दरखत पेड़ की छाया भी
अब सूइयों जैसे
चुभने लगी है
इसीलिए कल से
चिलचिलाती धूप में
आ खड़ा हुआ हूँ ।
बड़े-बड़े वृक्षों की प्रवृत्ति
बहुत ही खराब होती है
जहाँ तक उस की छाया जाती है
वहाँ तक कुछ जमता ही नहीं ।
दरखत पेड़ की छाया भी
अब सूइयों जैसे
चुभने लगी है
इसीलिए कल से
चिलचिलाती धूप में
आ खड़ा हुआ हूँ ।
बड़े-बड़े वृक्षों की प्रवृत्ति
बहुत ही खराब होती है
जहाँ तक उस की छाया जाती है
वहाँ तक कुछ जमता ही नहीं ।