Last modified on 13 जनवरी 2015, at 21:16

जंगल राज / आयुष झा आस्तीक

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:16, 13 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आयुष झा आस्तीक |अनुवादक= |संग्रह= }} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 वो गड़ेड़िए के लिबास में
छिपा हुआ भेड़िया...
भेड़ के दूध में
शीलाजीत मिला कर पीने लगा...
भेड से ऊन उतार कर
उसे अर्द्धनग्न करके
सियारों में बाँटता रहा
सियार खुद को शेर समझने लगा...
और भेड़िए कसाई बनते गए...
बकरियाँ कसाई खाने में टँगने लगी...
मेमने के अस्थियों पर
जंगल राज लहलहाने लगा...
सुनो,
अब तो जागो...
क्यूंकि
अब निर्बलों और असहाय को
आगे लाने के लिए हाथ बढाना होगा...
मेमने के बिखरे हुए रक्त में भिंगो कर
लाल पताका फहराना होगा...