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जबसे गइलें स्याम नीको नाही लागे धाम / महेन्द्र मिश्र

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जबसे गइलें स्याम नीको नाही लागे धाम
से नीको नाही लागे मधुबनवाँ हो लाल।
घर में ना रहल जाला कुंज बन ना सोहाला
से दउरेला काटे वृन्दाबनवाँ हो लाल।
उहे जमुना के धार पनिया भइल अंगार
से हन-हन बहेला पवनवाँ हो लाल।
हरदम रोवे जीया प्रेमवाँ के बूतल दीया
से नयनवाँ से बहेला सवनवाँ हो लाल।
कहत महेन्दर ऊधो हमनी ना साधब जोग
से जाने कब होइहे दरसनवाँ हो लाल।