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जब भी तेरा ख़याल आया है / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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जब भी तेरा ख़याल आया है
दिल ने क्या क्या न गुल खिलाया है!

ऐ ग़म-ए-इश्क़! तेरी उम्र-दराज़
वक़्त क्या क्या न हम पे आया है

खुद पे क्या क्या न हमने जब्र किया
जब कहीं जा के सब्र आया है!

दूसरा ग़म कहीं उभर आया
एक ग़म गर इधर दबाया है

खेल उल्फ़त का है अजब ही खेल
ख़ुद को खोया तो उसको पाया है!

मुझको नादान इस क़दर न समझ
जान कर यह फ़रेब खाया है!

दिल पे जो इख़्तियार था, न रहा
लब पे तेरा जो ज़िक्र आया है

फिर वही शीशा है, वही पत्थर
देखिए क्या पयाम आया है!

ख़ुद-बख़ुद आज आँख भर आई
जाने किस का ख़याल आया है!

है शब-ओ-रोज़ आँसुओं से काम
रोग "सरवर" ने क्या लगाया है!