भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जय हो गणेश / प्रतिभा सक्सेना

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:02, 27 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिभा सक्सेना }} {{KKCatKavita}} {{KKAnthologyGanesh}} <...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जय हो गनेश, प्रथम तुमका मनाय लेई,
कारज के सारे ही विघ्न टल जायेंगे!
नाहीं तो देवन के दफ़्तर में गुजर नहीं,
तुमका मनाय सारे काज सर जायेंगे!

सारे पत्र-बंधन के तुम ही भँडारी हो,
हमरे निवेदन को पत्र तुम करो सही,
हमसों पुजापा लेइ आगे बढ़ाय देओ!
बाबू हैं गनेस, तिन्हें पूज लेओ पहले ई!

दस चढ़ाय देओ, ई हजार बनवाय दिंगे
कलम की मार बड़े-बड़े नाचि जायँगे,
उदर बिसाल सब चढ़ावा समाय लिंगे
इनकी किरपा से सारे संकट कटि जाहिंगे!

कहूँ जाओ द्वारे पे बैठे मिलि जावत हैं,
देखत रहत कौन, काहे इहाँ आयो है!
कायदा कनून तो जीभै पे धर्यो है पूरो!
नाक बड़ी लंबी, सूँघ लेत सब उपायो हैं

चाहे लिखवार, तबै लिखन बैठ जाइत हैं
क्लर्की निभात बड़े बाबू पद पायो है.
वाह रे गनेस, तोरी महिमा अपार
आज तक किसउ से जौन बुद्धि में न हार्यो है!

विधना के दफ़्तर के इहै बड़े बाबू हैं
पूजै प्रथम बिना तो काजै न होयगो,
सारी ही लिखा-पढ़ी इनही के हाथ,
जौन उनते बिगार करे जार-जार रोयगो!

हाथन में लडुआ धरो, पत्र-पुस्प अर्पन करो,
सुख से निचिंत ह्वैके जियो जिय खोल के
पहुँचवारे पूत, रुद्र और चण्डिका के है जे,
इनके गुन गान करो, सदा जय बोल के!