ज़िन्दगी वीरान है कुछ राह मिलनी चाहिए।
दीन औ ईमान अब बिकने लगे है लोगों के,
प्रेम से अब जन रहें यह फिक्र दिखनी चाहिए।
जाति-मज़हब के लिए अब हो चुके दंगे बहुत,
भाई-चारे की यहाँ नदियाँ निकलनी चाहिए।
आपसी मिल्लत से उसकी बात बनती ही नहीं,
बात बनने के लिए कुछ बात बननी चाहिए।
ग़म छुपाए जी रहे मजबूरियों में सब यहाँ
मुस्कुराहट की भी तो बरसात करनी चाहिए।