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जिस वक़्त / प्रेमशंकर रघुवंशी

तुम्हारे घर से
जिस वक़्त
नहीं आने को कहकर

लौट रहा था

उस वक़्त
बरहमेश मिलते रहने का
पक्का भरोसा देख रहा था

आँखों में तुम्हारी ।