Last modified on 7 मई 2015, at 15:13

जीवन / संजय शेफर्ड

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:13, 7 मई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय शेफर्ड |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुझे पता है
एक दिन उड़ते हुए आएगी मृत्य
अपने डैनों को फैलाए
और देह से समेट लेगी उस तत्व को
जिसे लोग जीवन कहते हैं
देह जो खाली देह नहीं है
खोखली हो जाएगी
और खाली कोटरों में
कुछ परिन्दे बना लेंगे घोंसले
फिर शुरू होगी देह की गुटरगू
फिर से लौटेगी जिन्दगी
उन जन्में- अजन्में
अण्डो से बाहर निकलते बच्चों के साथ
जिनके पास उड़ने को पंख नहीं होते
और ना ही चलने को पैर
पर होती हैं उनकी भी माँएं
जो देती हैं उम्मीदें
और एक दिन लौट आता है जीवन
दो नन्हें- नन्हें पैरों
और नर्म- नाज़ुक पंखों के साथ…
हां, ऐसे ही तो मरे हुए देह में लौटता है जीवन