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तिहारौ बिरह दुःख-सुख-रूप / हनुमानप्रसाद पोद्दार

तिहारौ बिरह दुःख-सुख-रूप।
कबहुँ हँसावत, कबहुँ रुवावत, बिबिध भाव अनुरूप॥
जब तुहरे रस-सुंदर मोहन सुख की आवै याद।
तब बहि चलै प्रेम-सुख-सरिता, तजि कै सब मरजाद॥
जब अमिलन की दुखद भावना मेरे मन में आवै।
तब अति दारुन दुःख-‌अनल प्रगटै तन-मनहि जरावै॥
जब मन सुमिरन करै अननि ह्वै मधुर दिव्य रसराज।
तब उमडै आनंद-सुधानिधि, डूबै दुःख-समाज॥
जब मन महँ प्रत्यच्छ दरस की अति उतकंठा जागै।
तब अतिसय संताप बिरह कौ उमगै, सब सुख भागै॥