तीनिहुँ लोग नचात फूँक मेँ मंत्र के सूत अभूत गती है ।
आप सदा गुनवन्ति गुसाइन पाँयन पूजत प्रानपती है ।
पैनी चितौनि चलावति चेटक को न कियो बस जोग जती है ।
कामरु कामिनि काम कला जग मोहिनि भामिनि भानमती है ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।