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 तुझ बिन बहुत ही कटती है औक़ात1 औक़ात<ref>समय</ref> बेतरह
जूँ-तूँ के दिन तो गुज़रे है, पर रात बेतरह
होती है एक तरह से हर काम की जज़ा2जज़ा<ref>पुरस्कार</ref> आमाले-इश्क़ की3 <ref>. प्रेम के कर्मों की</ref> की है मकाफ़ात4 मकाफ़ात<ref>बदला(सज़ा)</ref> बेतरह
बुलबुल, कर इस चमन में समझकर टुक आशियाँ
सैयाद5 सैयाद<ref>बहेलिया</ref> लग रहा है तिरी घात बेतरह
पूछा पयामबर6 पयामबर<ref>संदेशवाहक</ref> से जो मैं यार का जवाब
कहने लगा ख़मोश कि है बात बेतरह
मिलने न देगा हमसे तुझे एक दम रक़ीब
पीछे लगा फिरे हैवो है वो बद्ज़ात की तरह
कोई ही मू7 मू<ref>बाल</ref> रहे तो रहे इसमें शैख़ जीदाढ़ी पड़ी है शाना8 शाना<ref> काँधे</ref> के अब हाथ बेतरह
'सौदा' न मिल, कर अपनी तू अब ज़िन्दगी पे रहम
है उस जवाँ की तर्ज़े-मुलाक़ात9 मुलाक़ात<ref>मुलाक़ात का ढंग</ref> बेतरह
'''शब्दार्थ
1. वक़्त, 2. पुरस्कार, 3. प्रेम के कर्मों की, 4. बदला (सज़ा), 5. बहेलिया, 6. संदेशवाहक, 7. बाल, 8. कंघा, 9. मुलाक़ात का ढंग
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