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तुमने यार बजा फ़रमाया ग़ज़ल तो एक इशारा है / डी. एम. मिश्र

तुमने यार बजा फ़रमाया ग़ज़ल तो एक इशारा है
मैं कैसे बतलाऊँ उसने ज़ोर का थप्पड़ मारा है।

पहले भी परखा है उसको गहराई से जाना है
जिसकी वो दे रहा दुहाई यही वो भाई चारा है।

उसको यह उम्मीद नहीं थी हुक़्मउदूली भी होगी
छोटा-सा इक लफ़्ज़ हमारा उत्तर बड़ा करारा है।

सारी मेहनत मेरी थी, सारी कोशिश भी मेरी थी
बिना कुछ किये वह कहता है पूरा माल हमारा है।

तीर चलाने वालों में भी आगे तीर तुम्हारा था
दया दिखाने वालों में भी पहला नाम तुम्हारा है।

जिसके दोनों हाथ बँधे हैं, दोनों पाँव भी ज़ख़्मी हैं
उस ग़रीब को बोला जाता है वो बड़ा नकारा है।

सब ने तो ये देखा मेरी दोनो पलकें गीली हैं
लेकिन किसने देखा जो भीतर जलता अंगारा है।

रोटी कपड़ा भले नही ‘जय हिन्द’ तो ज़िन्दाबाद मगर
वही ओढ़ना, वही बिछौना, वही हमारा नारा हैं।