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तुम्हारे है क्या दिल में हम जानते हैं / डी. एम. मिश्र

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तुम्हारे है क्या दिल में हम जानते हैं
बडी दूर से हम नज़र भाँपते हैं

छुपें लाख पर्दे में लेकिन उन्हें हम
मुखौटे के भीतर से पहचानते हैं

तुम्हीं एक धर्मात्मा हो यहाँ क्या
हक़ीक़त है क्या सब मगर जानते हैं

अमीरों की ख़ातिर ग़लीचे बिछाते
ग़रीबों को बाहर से दुतकारते हैं

किसी की भी जां ले लें मुस्का के लेकिन
उन्हें लोग क़ातिल नहीं मानते हैं

सलामत रहे आपका बाँकपन यह
ख़ुदा से यही बस दुआ माँगते हैं