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तुम्हें लगता है / अनिता भारती

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तुम चाहते हो
तुम्हारे सुर में मिला दे हम
अपना सुर
क्योंकि तुम्हे लगता है
हमारे सुर का अस्तित्व
तभी बचेगा

तुम चाहते हो
तुम्हारे ख्याब में हम
अपने ख्याब जोड़ दे
क्योंकि तुम्हारा मानना है
तभी पूरे होंगे हमारे ख्याब

तुम चाहते हो
तुम्हारी मंजिल के साथ खींच लाएँ हम
अपनी मंजिल
क्योंकि तुम्हारी धारणा है
तभी हमारी मंजिल को
दिशा मिलेगी

तुम चाहते हो
अपने मनपसंद रंग में रंगना हमको
क्योंकि तुम्हे लगता है
सबकी पसंद एक सी होनी चाहिए

पर हमें पसंद है
अपनी तरह के रंग में
रंगे ख्बाव, सुर और मंजिल