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तुम मिलो / प्रेमशंकर रघुवंशी

कुआँर की धरती की तरह मिलो
मिलो! शरद की दूध भरी चाँदनी जैसे
बसंती बयार की तरह मिलो
मिलो! कोकिल के मुक्त आलाप जैसे
बैसाख की रजनीगंधा की तरह मिलो
मिलो! सावन के मेघ से फूटती सूर्य-किरण जैसे

कविता के बाग़ में दूब-सी पीकती अनुभूति की तरह मिलो
मिलो! अक्षयवट से फूटकर
पाताल तक समाती जटाओं जैसे
तुम मिलो! कुछ-कुछ इस तरह- मिलो तुम ।