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तू भी मेरे साथ रोया किस लिए
तूने भी दामन भिगोया किस लिए
 
रोशनी का था न जब कोई पता
रात मैं इक पल न सोया किस लिए
 
सींच कर बंजर ज़मीं को ख़ून से
हार में कांटा पिरोया किस लिए
 
ऐसी मजबूरी थी क्या, ये बार ए ग़म
ना तवाँ काँधों पे ढोया किस लिए
 
तन भी मैला, मन भी मैला ही रहा
पैरहन का दाग़ धोया किस लिए
 
ऐ रवि होना जो था हो कर रहा
दिल ने अपना चैन खोया किस लिए
</poem>