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|संग्रह=जैसा भी है / बिरजीस राशिद आरफ़ी
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तेरे आने की जब ख़बर आई
रोज़ महके है दिल की अँगनाई
 
अब सितम में खलक रहा है करम
कुछ असर कर गई है रुसवाई
 
छलनी सीना दिखाने आई थी
राजदरबार में, यह शहनाई
 
साज़ देने लगी वो घुँघरू को
फिर कभी लौटकर नही‍ आई
 
तुझसे मिलने का वो हसीं अहसास
बर्फ़बारी में जैसे गरमाई
 
आपतो सो रहे है‍ बिस्तर पर
आरज़ू ले रही है आँगड़ाई
 
उनकी आँखों में झाँक मत ’राशिद’
खेंच लेती है ख़ुद ही गहराई
 
काँटों का बिस्तर मिले, या फूलों की सेज
नी‍द द्वारे आ गई, कुछ तो या रब भेज
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कल भी हम बदहाल थे,आज भी है‍ बदहाल
कल तक लू से हम, मरे अब बारिश भूचाल
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कब से है‍ परदेस में, अब घर भेजो राम
देख रहे है‍ रास्ता, जामुन, लीची, आम
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बारिश के सुरताल पर नाचे अपना प्यार
या तो रिमझिम की तरह, या फिर मूसलधार
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सब का जिस्म जलाए हैं, ख़ुद भी तपें मई-जून
सावन भागा आएगा, जो कर दूँ मैं फून
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देश मे‍ है सुख शांति ठण्डा है व्यापार
दंगे और फ़साद हों तभी बिकें अख़बार
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प्रेम का बंधन देखना, हो तो चलिए गाँव
उसके आँगन पेड़ है, मेरे आंगन छाँव
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प्रेम की मुश्किल है डगर बाधा है संसार
ख़ुद ही राह बनाएँगे हम हैं जल की धार
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घर से बाहर शांति घर में सुख और चैन
दिन होली के रंग से दीवाली-सी रैन
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युग क्या बदला बदल गई, इस जग की हर रीत
नी‍द उड़ी संगीत से, अर्थहीन हैं गीते
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