भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरे आने की जब ख़बर आई / बिरजीस राशिद आरफ़ी
Kavita Kosh से
तेरे आने की जब ख़बर आई
रोज़ महके है दिल की अँगनाई
अब सितम में खलक रहा है करम
कुछ असर कर गई है रुसवाई
छलनी सीना दिखाने आई थी
राजदरबार में, यह शहनाई
साज़ देने लगी वो घुँघरू को
फिर कभी लौटकर नही आई
तुझसे मिलने का वो हसीं अहसास
बर्फ़बारी में जैसे गरमाई
आपतो सो रहे है बिस्तर पर
आरज़ू ले रही है आँगड़ाई
उनकी आँखों में झाँक मत ’राशिद’
खेंच लेती है ख़ुद ही गहराई