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तोंय चंदन बनी महकोॅ सगरोॅ / अश्विनी

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तोंय चंदन बनी महकोॅ सगरोॅ
हम्में पलाश बनी लहकै छी

ऊ हवा केॅ रोकी बात करोॅ
जे मलयगिरी सें आवै छै
ममता रोॅ मिठ्ठोॅ थपकी सें
सुक्खोॅ के नीन सुलावै छै
युग-प्राण, शांति-सम्पन्न-सरल
हमें मीत बनी केॅ महकै छी

वन-आंगन गाछी सें भरलो
जीवन-सरिता सें सींचै छै
कामोॅ-ऊर्जा केॅ मोड़ी केॅ
उत्सव रोॅ गति तांय खींचै छै
कर्मोॅ बंशी के धुनोॅ पर
सब थिरकय छी सब बहकै छी