तोड़ देंगे जंगलों का मौन
वे नहीं करेंगे इन्तज़ार सूरज आने का
बल्कि अल-सुबह ही
वे कुहरे की चादर चीरकर
भेड़ों के डोरे1 खोल देंगे
और चल देंगे जंगल की तरफ
तब भेड़ों के खाँकर2 बजेंगे जंगलों के बीच
खनन-मनन वाली धुनों में
दूर किसी पहाड़ पर
कुहरे के भीतर गूँजेंगी
शाश्वत खिलखिलाहटें
बजेंगी
घस्यारिनों3 की दरातियाँ
धीरे-धीरे ही छटकेगा
कुहरा
आवाजें और साफ
और हमारे करीब होती जायेंगी
एक दिन
ठीक उसी वक्त धार4 पर चढ़ेगा सूरज
और बिखेर देगा
ढलानों पर
रोशनी का घड़ा
मोतियों की तरह !
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