दर्द से उपजा हुआ इक गीत लिख
हर्फ़ेनफ़रत को मिटा कर प्रीत लिख
ज़िंदगी की राह पर चलते हुए
है सुलभता से मिली कब जीत लिख
प्रेरणा से पूर्ण हो तेरा सृजन
प्राण जो चेतन करे वो गीत लिख
पैरवी कर लेखनी से सत्य की
झूठ से हो कर नहीं भयभीत लिख
आज़माना चाहता है गर हुनर
आज के परिवेश के विपरीत लिख
किस तरह परमात्मा से हो मिलन
साधना की कौन सी हो रीत लिख
और कैसे कट रही है ज़िंदगी
हो रहा कैसे समय व्यतीत लिख
शिल्प का सौंदर्य केवल मत दिखा
भावना को मथ के तू नवनीत लिख