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दस दोहे (01-10) / चंद्रसिंह बिरकाली
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08:12, 16 नवम्बर 2010
आतां देखै उंतवाली हिवडै़ हुयो हुळास।
सिर पर सूकी जावतां छूटी जीवण
आस।। 10।।
आस ।।10।।
तुम्हें द्रुतगति से आती देख ह्दय में हुलास हुआ, पर सिर पर से सूखी ही जाते समय जीवन की आशा छूट रही
है।
है ।
</poem>
अनिल जनविजय
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