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दिल को ही समझने दो / सुनीता शानू

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याद हो तुम्हें भी शायद
दिल ने दिल से ही
किया था एक वादा
शायद वही वादा निभाते
तुम्हें अपने दिल की सुनाते
बरस जाती हैं आँखें
कभी-कभी
शायद इन्हें भी है तमन्ना
तुम्हें छूने
खुद में बसाने की
मैं जानती हूँ कि तुम
मुझे हँसाने का
मुझे मनाने का
कर ही लोगे जतन कोई
एक तुम्ही तो हो
अहसास में
समाये हो
हर साँसं में
मेरा अस्तित्व
तुम्हीं से है
तुम्हारे मुझमें होने की गंध
कस्तूरी सी उठती है मुझसे
खींच लेती है हर सुन्दर स्वप्न
तो फिर उदासियाँ भी
आ ही जाती हैं मेरे बहाने
तुमसे लिपटने
कुछ सवाल
तुमसे पूछने
यह भी तो सच है कि
तुम चुरा ले गये हो
मेरे प्रश्नों की कुँजी
उत्तर छिपाये बैठे हो दिल में-

ये दिल की बात है
दिल को ही समझने दो ना...