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देखते देखते ही साल गुज़र जाता है / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर

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देखते देखते ही साल गुज़र जाता है
पर तिरा ग़म है कि बढ़ता है ठहर जाता है

तैरती रहती है आँखों में तू हर शब ऐसे
जैसे दरिया में कोई चाँद उतर जाता है

कौन उस ख़्वाब की ता'बीर पे करता है यक़ीं
ख़्वाब जो नींद से लड़ता हुआ मर जाता है

हम ने आँखों की ज़बानों पे लगाए हैं क़ुफ़्ल
वर्ना दिल तेरी ही आवाज़ों से भर जाता है

फिर से दुनिया की तरफ़ ध्यान लगाया है मगर
ख़ाक इतने में तिरा दिल से असर जाता है