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देवी दर्शन / नवीन ठाकुर 'संधि'

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एक बुतरू हाथ पकड़ी केॅ, भेलोॅ चललै हमरोॅ साथ ;
रही-रही केॅ करै लागलै, हमरा सें मीठोॅ-मीठोॅ बात।
सब्भै सें पहिलेॅ मंदिर ढुकी केॅ वेॅ करलकै देवी दर्शन,
निकलतै बाहर करै लागलै, चाट गुपचुप मिठाय रोॅ वर्णन।
हम्में ओकरो मोन भॉपी केॅ नै कहलियै मनंेमन,
हमरोॅ मोन मुद्रा देखी केॅ वैं करलकै अनशन।
आबेॅ हमरा सोचतें-सोचतें होय गेलोॅ रात,
एक बुतरू हाथ पकड़ी केॅ, भेलोॅ चललै हमरोॅ साथ।

बाबा कैंन्हेॅ गोसाय छोॅ नाय भांगभोॅ खेल खिलौना चाट,
हम्में जानी गेलियै नै छौं पैसा-कौड़ी नै छौं वैन्होॅ ठाठ।
चलोॅ घोॅर छोड़ी केॅ एैलोॅ छीं, जल्दी सें पकड़ोॅ रसता बाट,
है बात सुनी केॅ हम्में होय गेल्हां लाजें काठ।
धन्न छै बुधगरोॅ बुतरू मनोॅ में नै राखलकै खाँत,
एक बुतरू हाथ पकड़ी केॅ, भेलोॅ चललै हमरोॅ साथ।

है गरीबी लाचारी भैया केकरा नै सताय छै,
मतुर सोचै-समझै कमाय रोॅ यही रस्ता बताय छै।
कैन्हेॅ कि धन दौलत सब्भै केॅ सब्भेॅ युगोॅ में प्यारोॅ छै,
एकरोॅ बिना जिनगी जानोॅ में सब दिन अन्हारोॅ छै।
यै अभाव पर सोचतें ‘‘संधि’’ कानै छै दिन-रात।