Last modified on 16 नवम्बर 2020, at 14:24

देश के आकाओं का डिगने लगा ईमान है / डी. एम. मिश्र

देश के आकाओं का डिगने लगा ईमान है
सिर्फ़ हम तुम ही नहीं ख़तरे में हिंदुस्तान है

तू मुसलमाँ और मैं हिंदू यही बस हो रहा
अब कहाँ कोई बचा इस देश में इन्सान है

छोड़िये ज़िद और सुनिये ग़ौर से बातें मेरी
बँाटने पर हो अड़े किसका मगर नुक़सान है

ये गुलिस्ताँ है यहाँ बातें अमन की कीजिए
उस तरफ़ मत जाइये बैठा वहाँ शैतान है

वक़्त पर रोटी मिले औ काम उनके हाथ को
इससे ज़्यादा क्या ग़रीबों का कोई अरमान है

ये बुजुर्गों की बतायी बात इस पर हो अमल
जोड़ना सबसे कठिन है , तोड़ना आसान है