Last modified on 23 अक्टूबर 2013, at 16:59

दो चित्र / नीरजा हेमेन्द्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:59, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जाग गया है दिनकर
गुलाबी लिबास से ढ़ँकी
प्राची सुन्दरी
अपने अधखुले नेत्रों से
समस्त सृष्टि को निहारती है-
कमलिनी शनैः-शनैः पुष्पित हो रही है
नर्म घास से पल्लवित होता
नन्हा कोंपल!
सृष्टि पर मानों निर्मलता / कोमलता का
सरल किन्तु महान संदेश बिखेरता हुआ
कृषकों ¬द्वारा रोपित
परिश्रम के बीजों से प्रस्फुटित होते दाने
सरसों के पीले सुगन्धित पुष्पों से सजा
धरती का कुसुमित आँचल
नव पल्लवों से आच्छादित वृक्ष
दूर-दूर तक फैला प्रकृति का /मनोरम रूप
प्राची सुन्दरी के होठों पर
स्निग्ध मुस्कान ठहर जाती है
मनुज!
टूटी जर्जर झोपड़ी से
जनवरों को चराने ले जाता वृ़द्ध
उसकी उँगली थामें
पग से पग मिलाने का प्रयत्न करता
मैले-कुचैले वस्त्र पहने वह निर्बल-सा बालक
चल देता अनन्त परिश्रम व संघर्ष के पथ पर
उस बहुमंजिली इमारत के सुसज्जित कक्ष में
निद्रामग्न मानव
जिसका हृदय सुविधाओं या कि चिन्ताओं के
भार से है दबा-सा
प्राची सुन्दरी के होठों से
 कहीं विलुप्त हो जाती है / वह मुस्कान
ओस की बूँदों को/ तपते सूर्य की पीली किरणों नें
हौले-हौले अपने आगोशा में लेना/ प्रारम्भ कर दिया है।
वह बालक, वृद्ध की ऊँगुलियाँ थामें
उन दुरूह पगडंडियों पर बढ़ा जा रहा है।