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नाथ! मनें अबकी बार बचा‌ओ / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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नाथ! मनें अबकी बार बचा‌ओ
ड्डँस्यो आय मैं भँवर-जाल, निकलणकी बाट बता‌ओ।
रस्तो भूल्यो, मिल्यो अँधेरो, मारग आप दिखा‌ओ॥
दुखियानै उद्धार करणको, थाँरै घणो उमा‌ओ।
मेरै जिस्यो दुखी कुण जगमें, प्रभुजी आप बता‌ओ॥
भोत कष्ट मैं भुगत्या स्वामी, अब तो ड्डंद कटा‌ओ।
धीरज ग‌ई, धरम भी छूट्यो, आफत आप मिटा‌ओ॥
आरत भोत हो रह्यो प्रभुजी! अब मत बार लगा‌ओ।
करो माफ तकसीर दासकी, सरण मनैं बकसा‌ओ॥