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निक्सन / केदारनाथ अग्रवाल

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बड़े खौफनाक लगते हो तुम
गुस्साए
खून में नहाए निक्सन
पैर से दबाए खड़े
दुनिया को।

रचनाकाल: २१-१२-१९७२