Last modified on 5 अक्टूबर 2014, at 09:48

निर्विकल्प / उत्पल बैनर्जी / मंदाक्रान्ता सेन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:48, 5 अक्टूबर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंदाक्रान्ता सेन |अनुवादक=उत्पल ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुझे तुम वापस बुला लेना मित्र
अगर वापस बुलाने-जैसा लगे
मेरी कमीज़ बेतुकी है और
उलटे-सीधे लगे हुए हैं बटन
मुझे वापस बुला लेना
यदि मेरे तलुवों में कीचड़ लगा रहे
बहुत मुश्किल होता है अभागी को पुकारना
मुझे वापस बुलाना लेकिन
किसी से छुपाकर नहीं, सबके सामने ... सभा में
माइक्रोफ़ोन हाथ में लेकर पढ़ना
मेरी लिखी फटी हुई चिट्ठियाँ
लोग कविता समझेंगे
तालियाँ बजेंगी
और क्या चाहिए, एक-दो सीटियाँ भी बज सकती हैं

तुम देख सकोगे कि
टूटा प्रेम अगर काव्य हो
तो कितना लोकप्रिय हो सकता है!
भीड़ जब उमड़ पड़े
तुम्हारे दरवाज़े पर
तो तुम मुझे खिड़की के रास्ते बुला लेना।