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नेवोन्मेष / दीप्ति गुप्ता

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उठो बढ़ाएँ हाथ प्यार से
आओ और गले लग जाएँ
आँसू से धो डाले कटुता
प्रेम-पाश में बँध जाएँ
उठो बढ़ाएँ हाथ प्यार से....

बढ़ते जाएँ नील गगन में
इन्द्रधनुष घर लें आएँ
उतर जाएँ गहरे सागर में
शान्ति ह्रदय में भर लाएँ
उठो बढ़ाएँ हाथ प्यार से....

नेह भरी आँखों से अपनी
बुझे दिलों के दीप जलाएँ
बैर भाव को मिटा दिलों से
सद्भावों के फूल खिलाएँ
उठो बढ़ाएँ हाथ प्यार से...

भयाकुल को थपक प्यार से
अभय - दान देकर आएँ
सुबक रहे जो शिशु अकेले
उन पर ममता बरसाएँ
उठो बढ़ाएँ हाथ प्यार से...

हिंसा से जो उबल रहे
उनमें करूणा की लौ जगाएँ
कटुता से तीखी जुबान को
मीठे बोल सिखा आएँ
उठो बढ़ाएँ हाथ प्यार से...

भटक गए हैं जो राहों से
उन्हें राह पर ले आएँ
नहीं रहा विश्वास जिन्हें अब
विश्वास उन्हीं के बन जाएँ
उठो बढ़ाएँ हाथ प्यार से...