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न हुआ सूर, न तुलसी, न मैं कबीर हुआ / मधुप मोहता

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न हुआ सूर, न तुलसी, न मैं कबीर हुआ
इश्क उसका नहीं तेरा था, सो फ़कीर हुआ

न मैं चन्दन, न मैं चूड़ी, न मै सिन्दूर बना
बहे जो आँख से, काजल की वो लकीर हुआ

न तू मुमताज़, न मीरा, न मरियम ही बनी
मैं पयम्बर न बना, बस दर्द की तस्वीर हुआ

तू भी बंटती ही रही, प्यासों में बूँद बूँद बटी
इतने हिस्सों में बटा मैं भी कि कश्मीर हुआ

न तू आया, न तेरा ख्वाब, न तेरा ज़िक्र
न मैं रोया, न मैं सोया, न मैं मीर हुआ