Changes

पद 81 से 90 तक / तुलसीदास / पृष्ठ 4

974 bytes added, 13:23, 16 अप्रैल 2011
छुटै न बिपति भजे बिनु रघुपति, श्रुति संदेहु निबेरो।
तुलसिदास सब आस छाँड़ि करि, होहु   (88) कबहूं मन विश्राम न मान्यो। निसदिन भ्रमत बिसारि सहज-सुख, जहँ तहँ इंद्रिन-तान्यो।1।  जदपि बिषय-सँग सह्यो दुसह दुख, बिषम जाल अरूझान्यो। तदपि न तजत मूढ़ ममताबस, जानतहूँ नहिं जान्यो।2।  जनम अनेक किये नाना बिधि करम-कीच, चित सान्यो। होइ न बिमल बिबेक-नीर बिनु, बेद पुरान बखान्यो।3।  निज हित नाथ, पिता गुरू हरिसों हरषि हदै नहिं आन्यो। तुलसिदास कब तृषा जाय सर खनतहि जनम सिरान्यो।4। र
<poem>
Mover, Reupload, Uploader
7,916
edits