Last modified on 26 अगस्त 2017, at 13:07

पहाड़ पर कविता के लिए / स्वाति मेलकानी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:07, 26 अगस्त 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वाति मेलकानी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब भी कोशिश करती हूँ
पहाड़ पर कविता लिखने की
तो सफे़द काग़ज पर
उकेरे अक्षर
पहाड़ बनकर
उभरने लगते हैं।
ढुलकती दवात की
सारी स्याही
सूखते ना ैलों में उगी
काई बनकर
जम जाती है।
धारदार कुल्हाड़ी से
कटते जंगल की तरह
गिरने लगता है
एक-एक अक्षर
और बिछ जाता है
सफे़द काग़ज से लेकर
बाजार की कालिख़ तक।
उधड़ती चोटियों पर लगे
कंक्रीट के
पैबन्दों में उलझकर
मेरी कलम
भूल जाती है अपना रास्ता
और लौट आती है
सीधी मैदानी सड़कों पर।
एक बार फिर
मैं नहीं लिख पाती
पहाड़ पर कविता।
पहाड़ पर कविता लिखने के लिए
पहाड़ पर कविता लिखनी पड़ती है।