Last modified on 14 जुलाई 2015, at 16:42

पहिला सगुनमा तिल-चार हे, तब कय डटारेवो पान हे / मगही

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:42, 14 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |भाषा=मगही |रचनाकार=अज्ञात |संग्रह= }} {{KKCatMagahiR...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पहिला सगुनमा तिल-चार हे, तब कय डटारेवो पान हे।
देहु गन<ref>दे आओ</ref> दुलरइते बाबा के हाथ, सगुनमा भल हम पयलूँ हे।
लगनियाँ भेलइ उताहुल, सगुनमा भल<ref>शुभ, अच्छा</ref> हम पयलूँ हे॥1॥
कानी-कानी<ref>रो-रोकर</ref> चिठिया लिखथिन दुलरइते बाबू, अहे भाँमर<ref>भँवर। नदी के आवर्त्त में</ref> नदिया अइलइ<ref>आया</ref> तूफान हे।
लंगनियाँ अलइ उताहुल, सगुनमा भल हम पयलूँ हे॥2॥
सुपती<ref>सुपली</ref> खेलइते तूहें दुलरइते बहिनों हे, बहिनी भाँमर
नदिया देही न मनाई हे।
लगनियाँ मोर उताहुल, सगुनमा भल हम पयलूँ हे॥3॥
पुजबो<ref>पूजूँगी</ref> में भाँवर नदिया, सेनुरे पिठार<ref>चावल के आटे का बनाया पीठा</ref> अहे भइया भउजी
उतरे देहु पार हे।
लगनियाँ अलइ उताहुल, सगुनमा भल हम पयलूँ हे॥4॥

शब्दार्थ
<references/>