Last modified on 8 फ़रवरी 2014, at 15:28

पागलपन / उमा अर्पिता

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:28, 8 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा अर्पिता |अनुवादक= |संग्रह=धूप ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे चारों ओर
जीवन की हरियाली नहीं,
बल्कि
प्रतिबंधों के अस्वस्थ
घेरे हैं, जो मेरी
उल्लसित भावनाओं को
बीमार किये डाल रहे हैं।
यहाँ...
स्वतंत्रता का खुला आकाश न होकर
बीमार/अस्वस्थ/मजबूर
साँसों का बंधन है,
मेरे चारों ओर
अनगिनत लोगों की भीड़ है,
मगर--
किसी से कोई संबंध नहीं...
क्योंकि/यहाँ रिश्तों की बुनियादें
बड़ी खोखली होती हैं।
अनुभव की ठोकरों ने
इतना तो
सिखा ही दिया है कि
इन खोखली बुनियादों पर
भावनात्मक संबंधों के
महल खड़े करना
नितांत पागलपन है।