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पौधों के कपड़े / दिविक रमेश

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पौधों को देती हूँ पानी
तो होती मुझको हैरानी
झुका झुका कर हिला हिला कर
हर टहनी कहती ’दो पानी’!

मैं कहती पर पहले जड़ को
देने भी दो मुझको पानी
फिर तुमको मैं नहला दूंगी
जितना चाहो लेना पानी।

नहलाया तो पत्ता पत्ता
लगा झूमने गा गा पानी
चॆरी बोली ’मैं नहलाऊं
जैसे नहलाती है नानी’?

फिर बोली पर दीदी पत्ते
क्यूं नंगू नंगू होते है?
दीदी बोली ये तो चैरी
पौधों के कपड़े होते हैं।