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प्रथम कातिक राजकुमार / मैथिली लोकगीत

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मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रथम कातिक राजकुमार, माहि तेजि कन्त गेला बनवास
की नाचहु अहिला चराबहु गाय, कि बिनु पिय कातिक
मोहि ने सोहाय, की हम मरि जइहें
दोसर मास अगहन चढ़ि गेल, नैहर सँ घुरि सासुर गेल
सिनुर टिकुली काजर रेख, घुरमि-घुरमि कन्त
धनी मुह निरेख, कि हम मरि जइहें
पूसहि मास पूसोत्तर भेल, कि झिलमिल केचुआ
तनातनि हिय कांपय, गेरुआ कांपय, सेज कि पिया बिनु
कांपय धनिक करेज, कि हम मरि जइहें
माघहि मास शिव व्रत तोहार, कि कतहु ने भेटल
पिया जी हमार, कि हम मरि जइहें
फागुन मास फागुनी बयार, तरुबन पत्र सभे झड़ि जाइ
जौं हम जनितहुँ फागुन निर्जन, पिया सँ मिलितौं भरि
पोखि, कि हम मरि जइहें
चैतहि मास वन बुलय अहेर, सभे पठाओल पिया सनेस
कि हमरो समदिया कहब बुझाय, कि आब ई विरह दुख
सहलो ने जाय, कि हम मरि जइहें
बैसाखहि मास लगन दुइ चारि, संयुक्त लगन बियाहितौं
नारि, कि हम मरि जइहें
जेठहि मास बरिसाइत भेल, लए सखि गागर बड़ तर गेल
पूजहु गौरी देहु असीस, जीबहु हे कन्त लाख बरीस
कि हम मरि जइहें
अखाढ़हि मास अखाढ़ी रोप, कि नव खरही सब काटय लोक
चिड़ै चुनमुनी सब खोता लगायल, कि हमरो कन्त रहल
घर छोड़ि कि हम मरि जइहें
साओन बेली फुले कचनार, कि देखि देखि नैन बहे जलधार
कि हम मरि जइहें
भादव मास राति अन्हार, लौका जे लौकय हहरय मेघ
कि बिनु पिया हहरय धनिक करेज, कि हम मरि जइहें
आसिन मास पूरल बरमास, कि हम मरि जइहें