Last modified on 21 जुलाई 2016, at 10:55

प्रियसम्मिलन / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:55, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सूतलि अछलि खने एलहु गोसाईं साँई, छलिहूं अचेत पिंड चेत भेल तेखना।
माथे हाथ देलछि जगाय जनु लेलछि, अनेग कला केलछी नवाजि आये एखना॥
जेहि गते छलिहूँ उठलिहूँ मे तेहि गते, पावन पुरुष पाव नीक भेल देखना।
धरनी कहेछि विसरेछि न छिनक मोहि, हिय में छपालछि करेंछि कोटि पेखना॥14॥