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फफून्द लगी रोटियाँ / ज्योति खरे

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रोटी की तलाश के बजाय
बमों की तलाश मैं जुटे हैं हम
डरते हैं
रोटियों को
कोई हथिया न ले

भूखे पेट रहकर
एक तहख़ाना बना रहे हैं हम
जहाँ सुरक्षित रख सकें रोटियाँ
 
डरते हैं हम
उस इनसान से
जिसके पेट मैं भूख पल रही हे
जो अचानक युद्ध करके
झपट लेगा हमारी रोटियाँ

हमारी सुरक्षित रोटियों के कारण
युद्ध होगा
मानव मरेगें
मरेंगे पशु -पक्षी
नष्ट हो जाएगी धरती की हरियाली
फिर चैन से बाँटकर खाएँगे रोटियाँ
जिनमे तब तक फफून्द लग चुकी होगी

ऐसा ही होगा जब - तब
जीवन की तलाश से
अधिक महत्वपुर्ण रहेगा
मारने के साधनों का निर्माण