Last modified on 1 अक्टूबर 2018, at 10:54

फ़लक भी ख़ौफ़ज़दा है उससे / रवि कुमार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:54, 1 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवि कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक बच्चा
किवाड़ की दराज़ से बाहर झांका
और गुलेल हाथ में लिए
हवा सा फुर्र हो गया
पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी की तरफ़
बस्ती की जर्जर चौखटों में
ख़ौफ़ तारी हो गया
कोई दहलीज़ नहीं लांघता
पर यह सभी जानते हैं
वह अपनी अंटी में सहेजे हुए
छोटे छोटे कंकरों से
सितारों को गिराया करता है
चट्टानों को बिखराकर लौटती
उसकी मासूम किलकारियाँ
मुनांदी की मुआफ़िक़
हर ज़ेहन में गूंज उठती हैं
ज़मीं तो ज़मीं
फ़लक भी ख़ौफ़ज़दा है उससे
वह आफ़्ताब को
गिरा ही लेगा बिलआख़िर
वह फिर से
हवा सा फुर्रsss हो रहा है