फूलों से प्यार कर सकूँ, मेरे पास इतना समय कहाँ है!
मेरे सिर पर पहाड़ों का बोझ है,
अगणित झाड़-झंखाड़ों का बोझ है,
सुगंध को स्वीकार कर सकूँ, मेरे पास इतना समय कहाँ है!
माना यह हवा बहुत सुहानी है,
पत्ती-पत्ती पर नयी जवानी है,
पर इनसे आँखे चार कर सकूँ, मेरे पास इतना समय कहाँ है!
पास ही सुई है, धागा भी है,
इशारे से उसने कुछ माँगा भी है,
माला गूँथकर तैयार कर सकूँ, मेरे पास इतना समय कहाँ है!
फूलों से प्यार कर सकूँ, मेरे पास इतना समय कहाँ है!