Last modified on 20 फ़रवरी 2017, at 12:25

बंदर की बस / श्रीप्रसाद

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 20 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्रीप्रसाद |अनुवादक= |संग्रह=मेरी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बंदर को बस एक मिल गई
काफी सस्ती
अब मत कोई भी पूछो
बंदर की मस्ती

चलने के पहले जाँची
अपनी बस सारी
लेकर बस चल पड़े, बिठाकर
बीस सवारी

मगर चले ही थे, उसका
दरवाजा टूटा
फेल हुआ फिर ब्रेक, किसी का
माथा फूटा

फिर भड़भड़भड़ शोर मचाया
बस ने ऐसे
दगे बीसियों बम के गोले
पथ पर जेसे

तुरंत पुलिस आई, बंदर ने
माँगी माफी
कहा पुलिस से, ले लो मुझसे
बारह टाफी

यह सुनकर तो किया पुलिस ने
चट जुरमाना
विनती की, पर नहीं पुलिस
वाला वह माना

अब इस बस को बेचबाचकर
बंदर भैया
नाच रहे हैं गा-गाकर के
ता ता थैया।