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बड़ रे दिनन सै हम असरा लगैलिअइ / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में उस लड़की का, जिसकी शादी हो चुकी है और अभी तक गौना नहीं हुआ है, बहुत ही स्वाभाविक चित्रण किया गया है। पहले तो उसकी आंतरिक इच्छा ससुराल जाने की रहती है, परंतु जब उसके जाने का दिन निश्चित हो जाता है, तब वह जाने से घबराने लगती है। उसे पितृगृह के मुक्त वातावरण और माता, पिता आदि का स्नेह स्मरण होने लगता है। इतना ही नहीं, ससुराल की परेशानियों, चूल्हे-चौके की कठिनाइयांे और सास-ननद के शासन की याद कर वह घबराने लगती है। लेकिन अंत में उसे जाना पड़ता है, तो अपनी सहेलियों से भरे गले से मिलकर चल पड़ती है।

बड़<ref>बड़े</ref> रे दिनन सेॅ हम असरा<ref>आशा</ref> लगैलिअइ, असरो न पुरल<ref>पूर्ण हुआ</ref> हमार हे।
असरी न पुरलै हमार मोरि हे सखिया, असरो न पुरलै हमार हे॥1॥
खेलैत रहली हम सखी रे सहेली सँग, औझटे<ref>अकस्मात्</ref> में ऐलै नेयार<ref>विदाई की सूचना</ref> हे।
गोर लागु पैयाँ परूँ हजमा हो भैया, फेरि लेहो हमरो नेयार हे॥2॥
घुरबै<ref>नहीं लौटूँगा</ref> न फिरबै नेयार धैले<ref>नैयार धैले= विदाई का दिन निश्चित करके</ref> जैबइ, कातिक पुनियाँ<ref>पूर्णिमा</ref> के नेयार हे।
ससुरा में जैबइ बड़ा रे दुख होयतइ, चुल्हबा फूँकैते दिनमा जाय हे॥3॥
सासु रे ननदिया के बोलबा सुने के परतै, मनमों न लागतै हमार हे।
नैहरा में रहबै बड़ा रे सुख होयतइ, दही दूध खेआ न सोहाय हे॥4॥
नैहरा में माय बाप रहली दुलरुआ, बिछुरे<ref>बिछुड़ने</ref> के दिन चलि आयल हे।
एक मास बीतलै दोसर मास बीतलै, आइ गेल पुनियाँ के दीन हे॥5॥
गंगा नहाइ हम ओसरा<ref>बरामदा</ref> चढ़ि बैठलिऐ<ref>बैठी</ref>, हुवै<ref>होने लगा</ref> लागल जाय के तैयार हे।
मिलि लेहो मिलि लेहो सखि रे सहेलिनी, फेरू<ref>फिर से</ref> मिलन होयत कठीन हे॥6॥

शब्दार्थ
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