भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदलता है घर मकान में / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 29 जनवरी 2018 का अवतरण
कुछ दिन पहले ही बदला है
घर मकान में
घर की बुनियादों को दादा
साधे रहते थे
हर मौसम में सबकी हिम्मत
बॉंधे रहते थे
मिलती रहीं सफलताएंॅ
हर इम्तिहान में
वैमनस्य के ठूंठे सबके
मन में फूट पड़े
बॅंटवारे के लिए सभी
गिद्धों से टूट पड़े
धीरेे-धीरे बदल रही है
छत मचान में
मोती चुगने वाली दादी
तिनके चुनती है
हुक्म चलाने वाली कैसे
ताने सुनती है
लगा टकटकी देखा करती
आसमान में
नफरत चिन्ता चुभन निरन्तर
बढ़ती जाती है
शंका अमर बेल-सी ऊपर
चढ़ती जाती है
युग भी कम पड़ता है
घर के समाधान में