Last modified on 26 फ़रवरी 2009, at 06:06

बदलाव / सुधा ओम ढींगरा

अनूप.भार्गव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:06, 26 फ़रवरी 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा }} <poem> सूखे पत्तों को उड़ते देख ऋतु ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सूखे पत्तों को
उड़ते देख
ऋतु ने
प्रश्न किया--
क्या तुम्हें
मेरे साथ की
इच्छा नहीं रही?

पत्तों ने कहा--
हम तो
बूढ़े,
बेकार
हो गए.
सोचा,
क्यों ना
बिखर कर
राख हों जायें.

इसी
बहाने
अपनी जननी से
मिलने की ललक
पूर्ण हो जाए.

शायद
उसके
नव प्रजन्न में
सहायक हो सकें.

सुनते ही
ऋतु भी
इठलाती
रंग बदलने लगी.