बसी है मेरे भीतर कोई कुब्जा,
तरन-तारन कन्हाई चाहता हूँ
पड़े थे जो सुदामा के पगों में,
वो छाले वो बिवाई चाहता हूँ।
सभा में गूँजती हों तालियाँ जब,
सभागृह से विदाई चाहता हूँ।
बसी है मेरे भीतर कोई कुब्जा,
तरन-तारन कन्हाई चाहता हूँ
पड़े थे जो सुदामा के पगों में,
वो छाले वो बिवाई चाहता हूँ।
सभा में गूँजती हों तालियाँ जब,
सभागृह से विदाई चाहता हूँ।