Last modified on 9 जुलाई 2015, at 12:20

बहुत मज़ा / दिविक रमेश

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:20, 9 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBaalKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आओ बूंदों
आकर मेरी क्यारी में हल चलाओ
बहुत मज़ा आएगा।

बहुत मज़ा आएगा
जब छूते हुए फसलों को
निकल जाएगी हवा
इधर से उधर।

और फसलें
बिलकुल हम बच्चों सी
खिलखिलाकर
लोटपोट हो जाएंगी।