Last modified on 15 अक्टूबर 2013, at 15:15

बात / कल्याणसिंह राजावत

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:15, 15 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

थे जानौ अर जाणा म्हे ही, थारे म्हारे कितरी बात
कुण कुण ने दयां साफ़ सफाई, जीतरा मूंडा उतरी बात !

दो हिवङा री हेत हथाई, जणा जणा री चढ़े जबान
सळ नै सळ ही रेवण दयो, अब तो सारे बिखरी बात !

प्रीत रीत पथ मीत देखता और देखता हंस बतलाण
लोगा रे बधगी अबखाई , म्हे तो जाणा इतरी बात !

थांरे खातर तन मन वारा, धन संपत सू दे सनमान
पण थांरी नासमझी सू ही , बीच बजारा बिकरी बात !

गळी गळी में बेळ कुबेला, आणू जाणू है निरसार
समझा हाँ पण समझा कोनी, आ तो म्हारे नितरी बात !

मन में के मजबून देह रे , दरपण में आज्यावे सार
ओले छाने बात करा अर चौड़े धाडे दिखरी बात !

थांरी नां सू हुवे उदासी, थांरी हाँ , सू हरख घनो
थांरे निरखण री निजरां सू नखरा कर कर निखरी बात !