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बारिश में भीगा चांद / वाज़दा ख़ान

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चांद
बारिश में भीगता है
पता नहीं बारिश में धुंधलापन था
या आंखों के पानी का एहसास
कि तुम्हारे सपनों की
नब्ज सुन्न हो गई.
चांद तुम धूप में पड़े-पड़े
धरती पर सच की लकीर
खींचा करते थे
कितनी लकीरें खींची
झुंड सा बना दिया
लेकिन तुम्हारा सच
बहुत कमजोर था, जिस दिन
धूप नहीं हुई, बह गई
सारी लकीर हवा में और
तुम्हारे सपनों की रंगीन दुनिया
जिन्हें तुम आकार लेते हुए
देखना चाहते थे
उसी ने (ईश्वर) चुरा ली
जिसने तुम्हें दी थी.